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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।

अथवा

बालक के विकास पर वातावरण के प्रभाव का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

वातावरण
(Environment)

व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी बाहरी शक्तियाँ विद्यमान हैं, वही उसका वतावरण कहलाता है। वातावरण के अन्तर्गत वे सभी बाह्य शक्तियाँ, प्रभाव, परिस्थितियाँ सम्मिलित होती हैं जो जन्म के बाद व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक आदि विकास को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। सरल शब्दों में, व्यक्ति के चारों तरफ जो कुछ भी विद्यमान है, वही उसका वातावरण है। वातावरण को पर्यावरण ( Environment) भी कहते हैं। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है 'परि + आवरण"। परि का अर्थ है बाहरी या चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है 'ढँकना'। अतः वे सभी वस्तुएँ जिनसे व्यक्ति चारों ओर से घिरा हुआ है वह उसका पर्यावरण/वातावरण कहलाता है। पर्यावरण के अन्तर्गत सभी भौतिक एवं अभौतिक वस्तुएँ सम्मिलित हो जाती हैं जो बालक के विकास में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। अतः वातावरण एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख कारक है जो बालक के विकास को प्रभावित करता है। संक्षेप में, यदि वंशानुक्रम को छोड़ दिया जाए तो बालक के विकास को प्रभावित करने वाले शेष सभी कारक वातावरण के अन्तर्गत ही आते हैं।

वातावरण की परिभाषाएँ
(Definitions of Environment)

विभिन्न विद्वानों ने वातावरण की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं-

(1) पी० जिसबर्ट के अनुसार - "पर्यावरण वह कोई भी चीज है जो किसी एक वस्तु के चारों ओर से घेरे हुए हैं और उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। "

(2) टी० डी० इलीएट के अनुसार- "किसी भी चेतन पदार्थ की इकाई के प्रभावशाली उद्दीपन एवं अन्तःक्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहा जाता है।"

(3) बोरिंग लैंगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार - "व्यक्ति के वातावरण के अन्तर्गत उन सभी उद्दीपनों का योग आता है जिन्हें वह जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक ग्रहण करता रहता है।"

(4) बुडवर्ड के अनुसार - "अनुवंशिकता में भिन्न व्यक्ति समान नहीं होते परन्तु समान वातावरण उन्हें समान बना देता है।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि "वातावरण के अन्तर्गत वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं जिनसे व्यक्ति चारों ओर से घिरा होता है तथा उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता रहता है।'

वातावरण के प्रकार
(Types of Environment)

बालक के विकास में वातावरण का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि एक अत्यंत ही प्रतिभाशाली व बुद्धिमान बालक को भी गलत संगति में डाल दिया जाए तो वह उस संगति में पड़कर आपराधिक प्रवृत्ति का ही बालक बनेगा। इसी प्रकार यदि एक सामान्य बुद्धि के बालक को उचित वातावरण प्रदान किया जाए, उसे अच्छी संगति में रखा जाए तो वह अच्छा व्यक्ति बन जाता है।

वातावरण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

(1) भौतिक वातावरण (Physical Environment) भौतिक वातावरण के अन्तर्गत वे सभी चीजें आ जाती हैं, जिन्हें देखा एवं स्पर्श किया जा सकता है। हमारा पर्यावरण भौतिक वस्तुओं के अन्तर्गत ही आता है, जिनसे हम चारों ओर से घिरे हुए हैं जैसे—जल, वायु, भोजन, स्वच्छता, मनोरंजन के साधन आदि।

(2) मनोवैज्ञानिक वातावरण (Psychological Environment)- मनोवैज्ञानिक वातावरण से अभिप्राय व्यक्ति की उन सभी मनोवैज्ञानिक दशाओं एवं परिस्थितियों से है जो व्यक्ति की मानसिक दशा एवं उसकी सोच को अनुकूल या प्रतिकूल बनाती है। मनोवैज्ञानिक वातावरण अनुकूल रहने पर व्यक्ति को कार्य करने में आनंद आता है। वह रुचि लेकर पूरे मन से कार्य करता है। फलतः उसे सफलता मिलती है। इससे उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक क्षमता का विकास होता है। वह सदैव ही संतुष्ट नजर आता है। वह स्वयं तो प्रगति करता ही हैं, समाज एवं देश को भी प्रगति के पथ पर ले जाता है। इसके ठीक विपरीत यदि मनोवैज्ञानिक वातावरण प्रतिकूल होता है तो व्यक्ति का मन उदास, निराश एवं खिन्न रहता है। वह चाहकर भी कार्यों को ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है। फलतः असफलता ही उसके हाथ लगती हैं। वह हमेशा संदेह के घेरे में घिरा रहता है। अशांति एवं चिड़चिड़ापन उसके स्वभाव में आ जाता है। वह जल्दी ही शारीरिक एवं मानसिक रूप से थक जाता है।

(3) जन्मपूर्व वातावरण ( Before Birth Environment) – गर्भस्थ शिशु के विकास में जन्मपूर्व वातावरण का महत्वपूर्ण योगदान है। यदि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती माता को संतुलित एवं पौष्टिक आहार नहीं दिये जाएँ तो गर्भस्थ शिशु का समुचित विकास नहीं हो पाता है, यद्यपि उसे जीन्स द्वारा स्वस्थ वंशानुक्रम प्राप्त हुआ है। संतुलित आहार के अभाव में गर्भस्थ शिशु कमजोर एवं अल्प वजन वाला शिशु (Underweight & weak child) का जन्म होता है। ऐसे शिशु की जीवन जीने की संभावना कम हो जाती है। इसी प्रकार यदि माता सम्पूर्ण गर्भकाल में संवेगात्मक रूप से अस्वस्थ रहती है। उसके घर में हमेशा कलह-क्लेश होते रहते हैं। वह प्रताड़नाओं की शिकार होती हैं तो जन्म के बाद शिशु में भी संवेगात्मक अस्थिरता पायी जाती है। ऐसे बालक अन्तर्मुखी एवं दब्बू प्रकृति के होते हैं।

(4) जन्म के बाद का वातावरण (After Birth Environment) यद्यपि नवजात शिशु स्वस्थ पैदा होता है, मगर वह इस काबिल नहीं होता है कि वह स्वयं चल-फिर सके। अपने सभी कार्यों को कर सके। वह तो केवल क्रन्दन (Crying) करना जानता है। जन्म के बाद की परिस्थितियाँ एवं वातावरण भी माता के गर्भ से बिल्कुल ही भिन्न होती हैं जिसमें बालक को स्वयं को समायोजित करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता ही उचित वातावरण प्रदान कर नवजात शिशु को स्वस्थ जीवन देते हैं।

नवजात शिशु जब पैदा होता है तो वह अत्यंत ही असहाय दशा में होता है। यदि उस समय उसकी उचित परवरिश एवं देखभाल नहीं की जाए, उपयुक्त वातावरण नहीं प्रदान किया जाए तो उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ बालक को पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने का वातावरण प्रदान किया जाता है। जिससे उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। उसे बोलना, पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है जिससे भाषा का विकास होता है। अतः जन्म के बाद का वातावरण बालक के विकास में अहम् भूमिका निभाता है।

(5) पारिवारिक वातावरण ( Family Environment) - नवजात शिशु जब पैदा होता है और आँखें खोलता है तो सबसे पहले माता-पिता एवं परिवार के सदस्य ही उसे प्यार से अपनी गोदी में लेकर, आँचल में छुपा लेते हैं और उसकी हरेक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। माता नवजात शिशु को गोद में लेकर स्नेहपूर्वक स्तनपान कराती है और उसके सिर पर हाथ फेरती है। उसे प्यार करती है जिससे बालक का समुचित विकास होता है। परिवार के सदस्य बड़े ही प्यार से उसका पालन-पोषण करते हैं। अतः परिवार विभिन्न रूपों में बालक के विकास को प्रभावित करता है, जैसे-

(i) परिवार का आँतरिक वातावरण (Internal Environment of Family) – परिवार का आँतरिक वातावरण यदि सुखद एवं शांतिपूर्ण होता है, माता-पिता शिक्षित, चरित्रवान, कुशल एवं योग्य होते हैं, तथा बालक की अच्छी परवरिश करते हैं तो बालक का सर्वांगीण विकास होता है।

परन्तु यदि पारिवारिक वातावरण दोषपूर्ण है। घर में सदैव लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। माता-पिता में दिन रात कलह-क्लेश होता रहता है तो बालक का समुचित विकास नहीं हो पाता है क्योंकि बच्चे डरे-डरे व सहमे-सहमे रहते हैं। इससे बालकों में संवेगात्मक तनाव हो जाता है।

(ii) परिवार की संरचना (Structure of the Family)—परिवार का आकार एवं संरचना किस प्रकार का है, इस बात पर भी बालक का विकास निर्भर करता है। यदि संयुक्त परिवार है जिसमें माता-पिता के अलावा दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ ताई, चचेरे भाई-बहन, बुआ, आदि परिवार के अन्य सदस्य साथ रहते हैं तो बालक को पूरा प्रेम एवं संरक्षण मिलता है। दादा-दादी कहानियों एवं किस्सों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देते हैं। बालकों को उत्तम संस्कार एवं अच्छे गुणों को सिखाया जाता है। अतः बालक की अच्छी परवरिश होती है।

यदि परिवार की संरचना एकाकी प्रकार ( Nuclear type) की है जिसमें केवल माता-पिता एवं भाई-बहन ही साथ रहते हैं और माता घर पर रहकर ही बालकों को संभालती है तब तो बालक की अच्छी परवरिश होती है व उसका अच्छा शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। परन्तु जिन परिवारों में माता कामकाजी होती है और बालकों को नौकरानी के भरोसे एवं उसी के संरक्षण में पाला जाता है, वहाँ बालक का शारीरिक एवं मानसिक विकास तो हो जाता है, मगर संवेगात्मक विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है।

(iii) परिवार की सामाजिक एवं आर्थिक दशा (Social and Economic Condition of Family) - परिवार की सामाजिक एवं आर्थिक दशा भी बालक के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। निर्धन परिवारों में पले-बढ़े बालकों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है, क्योंकि उन्हें पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्यकर आवास, आरामदायक वस्त्र एवं अन्य चीजें उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। धन के अभाव में माता-पिता अपने बालकों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं दे पाते हैं। उन्हें अच्छे विद्यालयों में पढ़ने को नहीं भेजा जाता है और न ही उन्हें किताब, कॉपियाँ एवं अन्य चीजें ही उपलब्ध करायी जाती हैं। इस कारण उनका समुचित विकास नहीं हो पाता है। इसके विपरीत धनाढ्य एवं सम्पन्न परिवारों के बालकों का शारीरिक एवं मानसिक विकास उत्तम प्रकार का होता है। उन्हें पौष्टिक भोजन दिया जाता है। आवश्यकता की सभी चीजें समय पर उपलब्ध करायी जाती हैं। अच्छे-से-अच्छे स्कूलों व कॉलेजों में पढ़ने हेतु भेजा जाता है। शिक्षण, प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की जाती है। मनोरंजन के सभी साधन उपलब्ध कराये जाते हैं। मगर ध्यान रहे ! आवश्यकता से अधिक साधन सम्पन्नता भी बालकों के विकास में व्यवधान डालती है।

(6) विद्यालय का वातावरण (School Environment) बालक जब पढ़ने-लिखने के लायक हो जाता है तो उसका दायरा केवल घर या पड़ोस तक ही सीमित नहीं रहता है। अब वह स्कूल जाने लगता है। वहाँ वह अनुशासित रहना सीखता है और विद्यालय के नियमों का पालन करता है जैसे—समय पर विद्यालय जाना, सत्य बोलना, कक्षा में शांत रहना, शिक्षक की बात मानना, चोरी न करना, बिना आज्ञा लिए बाहर नहीं जाना आदि। इतना ही नहीं, विद्यालय में वह विभिन्न व्यवहार एवं तरीकों को सीखता है और उन्हें अपने जीवन में अपनाता है। अत: विद्यालय का वातावरण भी सुखद, शांतिप्रिय, अनुकूल एवं प्रसन्नतादायी होना चाहिए।

(7) सांस्कृतिक वातावरण (Cultural Environment) - संस्कार एवं संस्कृति किसी भी देश एवं समाज के रीढ़ की हड्डी होती हैं। इसके बिना देश का विकास संभव नहीं। बालक के विकास में सांस्कृतिक वातावरण का भी महत्वपूर्ण योगदान है जिसे कदापि अनदेखा नहीं किया जा सकता है। बालक जिस संस्कृति में पलता बढ़ता है, वह संस्कृति उसके व्यक्तित्व विकास में सहायक सिद्ध होती है। सांस्कृतिक वातावरण की अमिट छाप बालक के व्यक्तित्व विकास पर पड़ जाती है, वह जीवनपर्यन्त बनी रहती है। यथार्थ में, संस्कृति बालक को एक सुन्दर परिवेश प्रदान करती है, जिसके सम्पर्क में रहकर बालक बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति बनता है।

(8) सामाजिक वातावरण (Social Environment) – बालकों के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण कारक है सामाजिक वातावरण। बालक समाज में रहकर ही सामाजिक रीति-रिवाजों, दर्शनों, मूल्यों, लक्ष्यों को सीखता है और उन्हें अपने जीवन में अपनाता है। अतः उसमें सामाजिकता का विकास होता है। वह सामाजिक परम्पराओं का निर्वहन करना सीख जाता है। समाज में समय-समय पर होने वाले विभिन्न उत्सवों, पर्वों, त्योहारों आदि के आयोजनों एवं उनमें भाग लेने से बालकों में सामाजिकता का विकास होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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